आचार्य धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री की श्रीराम कथा के षष्ठम दिवस श्रीराम-जानकी विवाह वर माला के पश्चात प्रभु श्री राम, परशुराम संवाद, अयोध्या से बारात आगमन पर दिये अपना व्याख्यान

रायपुर. आचार्य धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री की गुढ़ियारी में श्रीराम कथा के षष्ठम दिवस श्रीराम-जानकी विवाह वर माला के पश्चात प्रभु श्री राम, परशुराम संवाद, अयोध्या से बारात आगमन पर अपना व्याख्यान दिये.
महाराजश्री ने श्री बागेश्वरधाम के हनुमान जी को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया. श्री हनुमान की आरती में महंत डॉ़. रामसुंदरदास, आयोजक ओमप्रकाश मिश्रा, संसदीय सचिव विकास उपाध्याय, संयोजक संतोष सेन एवम् हनुमान मंदिर के ट्रस्टीगण शामिल हुए. पश्चचात मीडिया के सभी प्रतिनिधिगण भी मंच में आकर आशीर्वाद लिये.
लाल देह लाली लसे…!! तुलसी-2 सब कहें…!! सीता-राम, हनुमान….!! भजनों के पश्चात महाराज हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं से मुखातिब हुए. उन्होंने कहा कि किसी को भी अहंकार, गुरुर नहीं करना चाहिए. व्यक्ति का व्यक्तित्व विनम्रता से ही निखरता है. लंकाधिपति रावण को भी गुरुर था जिसे हनुमान जी ने तोड़ा।


चांद को गुरुर है कि उसके पास नूर है !
पर उसे क्या पता हमारे पास श्रीराम जैसा कोहिनूर है !!
भारत देश को माता कहा जाता है परंतु पूरे देश छ. ग. ही ऐसा प्रदेश जिसे महतारी कहा जाता है क्योंकि यह कौशल्या माता का प्रदेश है. उन्होंने बताया कि वे कल चंदखुरी स्थित माता कौशल्या के मंदिर का दर्शन करने गये थे. उन्हें बहुत सुख, आनंद की अनुभूति हुई. उन्होंने ने ओमप्रकाश मिश्रा की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके प्रयासों से पूरा छत्तीसगढ़ राममय हो गया है. उन्होंने मीडिया का धन्यवाद करते हुए कहा कि उनके प्रदर्शन से सनातन की विजयी हुई है, वे बहुत ही धन्यवाद के पात्र हैं.
उन्होंने कहा कि भगवान सर्वव्यापी हैं, उन्हें दृढ़ता एवम् भाव से स्मरण करो तो वे किसी ना किसी रुप में आपको जरुर दर्शन देंगे. उन्होंने कहा कि जहां ज्यादा विद्वान एक साथ होते हैं वहां कभी विचारों में एकता नहीं विवाद होता है.
स्वयंवर में भगवान शंकर के धनुष तोड़े जाने ले क्रोधित भगवान परशुराम से प्रभु श्रीराम ने कहा कि मैं तो सिर्फ राम हूं, आप तो परशुराम हैं, पराक्रमी हैं. श्री राम का स्वभाव फलदार वृक्ष की तरह झुका हुआ था. उनके इस विनम्र स्वभाव से परशुराम जी का क्रोध शांत हुआ.
रावण अहंकारी था. लंका में उत्पात मचा रहे हनुमान जी को पकड़ने अपनी चारों सेना को भेजा. हनुमान जी ने उस सेना को अपनी पूंछ में बांधकर ब्रह्मांड में फेंक दिया. रावण को खबर लगी तो वे युद्ध स्थल में पीछे से जाकर हनुमान जी की पूंछ को देख रहे थे. हनुमान जी के पकड़ में आने पर क्रोधित रावण ने पूछा तुमने मेरे बेटे अक्षत को क्यों मारा? हनुमान जी ने कहा जिसकी कभी क्षति नहीं होती वह अक्षत होता है, मुझे लगा इसे मेरे मारने से इसकी कोई क्षति नहीं होगी पर यह तो मर गया. इसकी मृत्यु का कारण आप ही हैं जो इसका गलत नाम रख दिये.
श्री राम जी के बाराती भी अनोखे थे. राम जी ऐसे अनोखे दुल्हा हैं जो शादी तो पहले किये और उनकी बारात बाद में निकली. गुरु वशिष्ठ जी अयोध्या गये और राजा दशरथ से जनकपुरी बारात ले जाने के लिये बोले. राजा दशरथ दुविधा में पड़ गये, भला बिना दुल्हे के बारात कैसे निकालें? गुरुजी ने कहा भरत जी और शत्रुघ्न जी को दुल्हा बनाकर भेज दें. सीता जी की बहनों से तीनों राजकुमारों का विवाह हो जायेगा. बारात में जाने वाले हाथी और घोड़े भी प्रसन्न हैं कि व्यवहार में राजा जनक से मिलने वाली घोड़ी और हथनियों से उनकी भी जोड़ी बन जायेगी. बारात में अनेक साधु, महात्मा भी शामिल होते हैं जो आगे-2 चलते हैं. इस तरह श्रीराम-जानकी विवाह सम्पन्न होता है.

रामधुन लागी, लागी रे धुन लागी रे…!! आई मिथिला अदभूत बारात सखियां…!! कर दिया शंकर जी ने आगाह, आज राम-सीता का है शुभ-विवाह…!! गांव वाली अवध कुल की रानी, जनकपुर की रानी…!! सिया राम जनकपुर आये…!! आज मेरे राम की शादी है…!! तेरे नाम की ओढ़ चुनरिया….!! आदि अनेक भजन महाराजश्री के श्रीमुख से सुनकर हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुगण झूमते-नाचते रहे जो बहुत ही अदभूत माहौल था.

कल एक मुस्लिम महिला जो स्वेच्छा से सनातन धर्म से जुड़ी है वह आज मंच में महाराज को राखी बांधकर अपना भाई बनाई और उनकी आरती की. इसका पूर्व नाम सुल्ताना था जिसे महाराज ने नया नाम सुही दासी रखा।

Author: Sudha Bag

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