🙏🙏 *जिस भी मानस मर्मज्ञ ने यह अन्वेषण किया है वह धन्य है* 🙏🙏
*COVID-19* ,
*GOSWAMI TULSIDAS* and *SHRI RAMCHARIT MANAS*
interpretation…….
“राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥3॥”
इन दिनों COVID-19 की रोकथाम के विषय में मैंने काफी पढ़ा , कई वाइरोलोजी की पुस्तकों से और अन्य माध्यमो और अनुसंधानों से यह पता चला की यह महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है| यह ही पता चला कि इस वाइरस की रोकथाम तीन चीज़ों से की जा सकती है –
१. UV-C radiation
2. Soap water sanitization
3. heat near boiling point
आज फैली इस महामारी के विषय में पढ़ते हुए दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण भी देखता रहा , बाद में अचानक ऐसी प्रेरणा हुई रामचरित मानस पढ़ी जाए , संयोगवश कहें या इश्वर अहैतुकी कृपा , जब रामचरित मानस को खोला तो उत्तरकाण्ड का दोहा १२० वाला पृष्ठ खुला पढना शुरू किया तो आश्चर्य चकित था
गोस्वामी तुलसीदास जी इस महामारी के मूल स्रोत चमगादड के विषय में उत्तरकाण्ड दोहा १२० (14) में वर्षो पहले की बता गये थे जिससे सभी लोग आज दुखी है :-
“सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा॥14॥”
इस महामारी के लक्षणों के बारे में वे आगे लिखते हैं जिसमे उन्होंने ये बता ही दिया है की इसमें कफ़ और खांसी बढ़ जायेगी और फेफड़ो में एक जाल या आवरण उत्पन्न होगा या कहें lungs congestion जैसे लक्षण उत्पन्न हो जायेंगे , देखिये –
“मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।
गोस्वामी जी इसके आगे ये भी बताते हैं की इनसब के मिलने से “सन्निपात ” या टाइफाइड फीवर होगा जिससे लोग बहुत दुःख पायेंगे –
प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।।
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना।।16||
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।19||
आज शायद यही कारण है की “Hydroxychloroquine” जो की मलेरिया की दवा है इसका प्रयोग सभी लोग करने लग गए हैं …
और इसके आगे लिखते हैं :
“एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥
जब ऐसी एक बीमारी की वजह से लोग मरने लगेंगे , ऐसी अनेको बिमारियां आने को हैं ऐसे में आपको कैसे शान्ति मिल पाएगी ???
“नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान।
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान॥121 ख॥”
नियम, धर्म, आचार (उत्तम आचरण), तप, ज्ञान, यज्ञ, जप, दान तथा और भी करोड़ों औषधियाँ हैं, परंतु इन सब से ये रोग जाने वाले नहीं है….
इन सब के परिणाम स्वरुप क्या होगा गोस्वामी जी लिखते हैं :-
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥
मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥1॥
इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जीव जीव रोग ग्रस्त हो जायेंगे , जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति और अपनों के वियोग के कारण और दुखी होते जायेंगे । गोस्वामी जी किहते हैं की मैंने ये थो़ड़े से मानस रोग कहे हैं। ये हैं तो सबको, परंतु इन्हें जान पाए हैं कोई विरले ही॥1॥यानि सबी में थोडा बहुत तो सभी में होगा पर बहुत कम लोगों को ही ठीक से detect भी हो पायेगा ..
आज हम देख की रहे हैं की इस जगत की बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इस रोग से ग्रसित होती जा रही है , इसमें आम लोगों की बात ही क्या की जाए ..इस विषय के बारे में भी गोस्वामी जी ने पहले से लिख दिया था –
जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।
बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।।
प्राणियों को जलाने वाले ये पापी (रोग) जान लिए जाने से कुछ क्षीण अवश्य हो जाते हैं, परंतु नाश को नहीं प्राप्त होते। विषय रूप कुपथ्य पाकर ये मुनियों के हृदय में भी अंकुरित हो उठते हैं, तब बेचारे साधारण मनुष्य तो क्या चीज हैं॥2॥
रोग पहचान लिए जाने पर या रोग के लक्षणों द्वारा रोग की पुष्टि हो जाने पर उन लक्षणों का इलाज किये ज
हम यदि देखे तो चाइना में जो लोग ठीक हो कर घर चले गये उनमे भी कुछ दिनों बाद पुनः इस रोग के होने की पुष्टि हुई वो भी कईयों को तो बिना लक्षणों के ….
अब सभी ये जानना चाहेंगे की इससे महामारी से हमे मुक्ति कैसे मिलेगी — तो इस विषय पर गोस्वामी जी लिखते हैं –
“राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥3॥”
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥4॥
All these ailments can no doubt be eradicated if by Shri Rama’s grace If the following factors combine.
1. There must be faith in the words of the physician in the form of a true preceptor; and
यदि श्रीराम जी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो॥3॥
श्री रघुनाथजी की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते॥4॥
“जय श्री राम ”
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