रायपुर. आचार्य धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री की गुढ़ियारी में चल रही श्रीराम कथा के सप्तम दिवस महाराज ने श्रीराम-जानकी विवाह पश्चात जनकपुर में लक्ष्मण जी एवम् माता सीता की सहेलियों के मध्य हास-परिहास तथा कन्या विदाई में परिजनों द्वारा दी जा रही सीख पर अपना व्याख्यान दिया.
व्यास पीठ पर आसीन होने के पश्चात बागेश्वरधाम के हनुमान जी की आरती की गई. आरती में आयोजक ओमप्रकाश मिश्रा, पूर्व मंत्री एवम् वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल सपत्नी, संसदीय सचिव विकास उपाध्याय, विधायक अनिता शर्मा, सभापति प्रमोद दुबे, संयोजक संतोष सेन, कांग्रेस जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे आदि विशेष रुप से शामिल हुए. जिनका ओमप्रकाश मिश्रा जी ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया.
महाराज ने कहा कि आज नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती है जिन्होंने नारा दिया तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आज मैं कहता हूं तुम मेरा साथ दो मैं तुम्हें हिन्दू राष्ट्र दूंगा. मेरी विनती है कि सनातन के विरोधियों को आप सभी करारा जवाब दो. विभिन्न धर्म गुरु रायपुर में हो रही कथा में सनातन जागरण और गतिविधियों को अपना समर्थन दे रहे हैं. सभी 13 अखाड़ा के प्रमुखों से निवेदन है कि वे भी हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने सामने आयें. मेरा कुछ लोग विरोध कर रहे हैं दरअसल वे मेरा नहीं सनातनी विचारधारा का विरोध कर रहे हैं. भगवान श्री राम, मीरा बाई, संत रविदास, तुलसीदास को भी विरोध का सामना करना पड़ा था तो ऐसी विचारधारा के लोग भला मुझे कैसे छोड़ सकते हैं. पर हम अपने कार्य में लगे रहेंगे और सनातनी झंडा गाड़ कर रहेंगे।
उन्होंने नस देखी और बीमार कह दिया !
हमने रोग पूछा तो कहा-
कर्जदार रहूंगा उस वैद्य का जिसने बालाजी का संसार दे दिया !!
लक्ष्मण जी, सीता जी की सखियों से कहने जाते हैं कि अब हमें बिदा करों, हमें अयोध्या जाना है, तब सखियां कहती हैं अभी कुछ और रस्म, नेंग बचा है, जल्दी क्या है? इसी हंसी ठिठोली में लक्ष्मण जी कहते हैं हम भाई तो खीर खाने से हुए पर माता जानकी तो जनकपुर की धरती पर फावड़ा चलाने से प्रकट हुईं. सखियां कहती हैं राम जी तो पुष्प वाटिका में माली से फूल की भीख मांगे जिस पर लक्ष्मण जी कहते हैं वे भीख नहीं अनुमति मांगे थे क्योंकि वे मर्यादित आचरण करते हैं और बहुत शिष्ट रहते हैं. प्रभु श्रीराम जी को धन नहीं बल्कि प्रेम से अपना बनाया जा सकता है. उन्हें सोने की लंका नहीं बल्कि शबरी के स्नेह भरे बेर पसंद थे क्योंकि उसमें स्नेह भाव था. शबरी माता भी छत्तीसगढ़ की हैं अत: धन्य है ये धरा जिसमें कौशल्या माता एवम् शबरी माता निवास की हैं.
सीता जी की बिदाई के समय परिजन उन्हें सास, ससुर एवम् ससुराल की सेवा का पाठ पढ़ा रहे थे. संस्कार से रहने की बात कह रहे थे.
बेटियां दो कूलों को अपने संस्कारों से रौशन करती हैं. बचपन से युवा अवस्था तक जिस घर में खेलकूद कर बड़ी होती विवाह के बाद वही घर छूट जाता है. परिजनों को रिश्तों को बचाने के लिए हमेशा झुककर, विनम्रता से रहना चाहिए. बहु को अपने सास-ससुर में माता-पिता और सास-ससुर को अपनी बेटी में बहू दिखनी चाहिये. यही हमारे संस्कार हैं. गरीबी में लोग रिश्ते तोड़ लेते हैं जो गलत है.
बन जाते हैं रिश्ते जब रुपये पास होते हैं !
टूट जाते हैं वे रिश्ते, जो गरीबी में खास होते हैं.
राम प्यारे से जिसका संबंध है !
उसे हर घड़ी आनंद ही आनंद है !!
मेरे बाबा की महफिल सजी है…!!
रामा-2 रटते-2 बीती रे उमरिया…!!
कौन कहते हैं भगवान आते नहीं…!!
मेरे राघव ललन सरकार, नजर तुम्हें लग जायेगी…!!
महाराजश्री के श्रीमुख से निकले भजनों से श्रद्धालुगण झूमते-नाचते रहे.
अंत महाराज श्री ने ओमप्रकाश मिश्रा को श्रीराम कथा आयोजन के लिये बधाई एवम् आशीर्वाद दिया. रामवनगमन पथ, कौशल्या माता मंदिर, गौ सेवा के लिये किये जा रहे कार्य एवम् श्रीराम कथा में सहयोग के लिये छत्तीसगढ़ सरकार की प्रशंसा की. पुलिस प्रशासन एवम् सभी इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया एवम् सभी प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष सहयोगियों को धन्यवाद कहा. उक्त जानकारी श्रीराम कथा आयोजन समिति के मीडिया प्रभारी नितिन कुमार झा ने दी।