लॉकडाउन 5.0:मोदी सरकार निशाने पर देश में कमयूनिटी :ट्रांसमिशन का बड़ा खतरा जनिए विषेषज्ञों ने क्या कहा ।

देश में आज से लॉकडाउन का पांचवां चरण शुरू हो गया. इस बीच भारत में अब विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा भी जाहिर कर दिया है. कोरोना संक्रमण रोकने के लिए बने नेशनल टास्क फोर्स के विशेषज्ञों ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहा है कि भारत के कई जोन में अब कोरोना का सामुदायिक संक्रमण हो रहा है, इसलिए ये मानना गलत होगा कि मौजूदा हाल में कोरोना पर काबू कर पाना संभव होगा. कोविड-19 पर गठित नेशनल टास्क फोर्स के सदस्यों ने कोरोना संक्रमण से निपटने में सरकार के रवैये की आलोचना की भी है.
भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन के संभावित सबूत पहले भी मिले थे. अप्रैल महीने में भारत की मेडिकल रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने इस ओर इशारा किया था. हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने तब इसे नजरअंदाज कर दिया था. अप्रैल महीने में कोरोना महामारी पर निगरानी के लिए नेशनल टास्क फोर्स ने एक कमेटी गठित की थी.
25 मई को मेडिकल क्षेत्र से जुड़ी तीन नामी संस्थाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कोरोना महामारी पर नियंत्रण के लिए अपनाए गए केंद्र के तौर-तरीकों की आलोचना की है. प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने वालों में स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व सलाहकार, एम्स, बीएचयू, जेएनयू के पूर्व और मौजूदा प्रोफेसर शामिल हैं. इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में डॉ डीसीएस रेड्डी भी शामिल हैं. डॉ रेड्डी कोरोना पर अध्ययन के लिए गठित कमेटी के प्रमुख हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में इन विशेषज्ञों ने लॉकडाउन को क्रूर बताया है और कहा है कि लॉकडाउन की कठोर सख्ती, नीतियों में समन्वय की कमी की कीमत अब भारत को चुकानी पड़ रही है. पत्र में लिखा गया है, “ये सोचना कि इस स्तर पर कोरोना वायरस पर काबू पा लिया जा सकेगा हकीकत से परे होगा, क्योंकि भारत के कई कलस्टर में कम्युनिटी ट्रांसमिशन पूरी तरह से होने लगा है.”
पीएम को लिखे पत्र में कहा गया है कि यदि इस महामारी की शुरुआत में ही, जब संक्रमण की रफ्तार कम थी, मजदूरों को घर जाने की अनुमति दे दी गई होती तो मौजूदा हालत से बचा जा सकता था. शहरों से लौट रहे मजदूर अब देश के कोने-कोने में संक्रमण ले जा रहे हैं, इससे ग्रामीण और कस्बाई इलाके प्रभावित होंगे, ज्यादा स्वास्थ्य व्यवस्थाएं उतनी मुकम्मल नहीं हैं. इस बयान में कहा गया है कि अगर भारत सरकार शुरुआत में संक्रमण विशेषज्ञों की राय ली होती तो हालात पर ज्यादा प्रभावी तरीके से काबू पाया जा सकता था.
दिल्ली स्थित एम्स में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख और रिसर्च ग्रुप के सदस्य डॉ शशिकांत ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किया है. उन्होंने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा, “यह पत्र तीन मेडिकल संस्थाओं द्वारा जारी किया गया एक संयुक्त बयान है, ये कोई निजी राय नहीं है.।

Author: Sudha Bag

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