गरियाबंद जिले के रेत खदानों में दिन-रात मशीन से लोडिंग को लेकर ग्रामीणों का आक्रोश मूर्त रुप ले लिया है। ग्रामीणों की जागरुकता की वजह से जिले के सर्वाधिक चर्चित कुरुसकेरा रेत खदान को बंद करना पड़ा। वहीं ग्रामीण अपनी जीत को खनिज विभाग के मुंह में तमाचा के रुप में देख रहे हैं। बहरहाल हाथ को काम देने की मांग को लेकर लामबंद हुए ग्रामीणों की एकता कब तक कायम रहेगी,य ह तो आने वाला समय ही बताएगा। गरियाबंद जिले में इन दिनों छह खदानें संचालित है। इनमें से पांच रेत घाट राजिम विधानसभा क्षेत्र ग्राम कोपरा, कुरुसकेरा, पितईबंध, परसदा और लचकेरा में शामिल है।
जेसीबी में चढ़कर किया विरोध
ग्रामीणों का आक्रोश इतने में ही शांत नहीं हुआ वे सीधे रेत खदान पहुंचे गए। मशीन में चढ़कर प्रदर्शन कर मशीन लोडिंग बंद करने और हाथ को काम देने की मांग करने लगे। ग्रामीण जब रेत घाट पहुंचे तो ठेकेदार ने तीन चैन माउटिंग मशीन कहीं छिपा दिया था। एक मशीन खराब पड़ी हुई थी, जिस पर चढ़कर ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया।
इनमें से कुरुसकेरा रेत घाट में चैन माऊटिंग मशीन से लोडिंग को लेकर ग्रामीण लामबंद हो गए थे। । इसके बाद से ग्रामीण रेत का मशीन से लोडिंग का विरोध कर रहे थे। रविवार को इसी मुद्दे को लेकर ग्रामीणों की बैठक है। जिसमें ग्राम विकास और रेत खदान में मशीन से लोडिंग को लेकर अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई। बैठक शुरु होते ही ग्रामीणों के बीच रेत खदान का मुद्दा उठा। गांव की अन्य कामों का हवाला देकर बैठक में उपस्थित बुजुर्गों ने इस मुद्दे पर बाद में चर्चा करने की बात कही। जिस पर सभी ग्रामीण राजी हुए। बैठक के अंतिम दौर में गांव के रेत घाट में चैन माऊटिंग माशीन से रेत लोडिंग का मुद्दा उठा। गांव के युवाओं का कहना था कि सरकार की मंशा हर हाथ को काम देने का है। इसके तहत रेत खदानों की नीलामी सरकारी तौर पर की गई है। नीलामी के प्रावधानों में स्पष्ट उल्लेख है कि रेत की लोडिंग मानव श्रम के जरिए किया जाए, ताकि स्थानीय मजदूरों को काम के लिए भटकना ना पड़े। साथ ही सुबह छह से शाम छह बजे तक ही रेत का निकासी किया जाए, ताकि सूर्यास्त के बाद के बाद गांव व आसपास में शांति का माहौल बना रहे हैं। इसके विपरीत कुरुसकेरा रेत घाट में चार चैन माऊटिंग मशीन से रेत की लोडिंग की जा रही है थी।
इससे गांव के बेरोजगारों में आक्रोश पनप रहा था। बेरोजगारों का गुस्सा रविवार को गांव की बैठक में फूट पड़ा। बेरोजगार युवाओं ने सीधे आरोप लगाया कि जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि की मंशा सरकार की योजना में पानी फेरने का है, तभी तो अखबारों में मशीन लोडिंग और रात-दिन रेत निकासी की खबर प्रकाशित होने के बाद भी इस पर हस्तक्षेप करना मुनासिफ नहीं समझा। ऐसे में उन्हें गांव की बैठक में सामने आना पड़ा। अब भविष्य में जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का रवैय्या ऐसा ही रहा तो उन्हें विरोध का सामना कर पड़ेगा। रेत ठेकेदारों के हाथों बिके खनिज विभाग और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी की वजह से रेत ठेकेदार के गुर्गे उन्हें धमकान से भी पीछे नहीं हटे और बीते रात मारपीट भी किया गया। बहरहाल ग्रामीणों का आक्रोश इतने में ही शांत नहीं हुआ वे सीधे रेत खदान पहुंचे गए। मशीन में चढ़कर प्रदर्शन मशीन लोडिंग बंद करने और हाथ को काम देने की मांग को लेकर ग्रामीणों का आक्रोश का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि वे रेत घाट पहुंचकर चैन माऊटिंग मशीन में चढ़कर विरोेध करने लगे। प्रदर्शनकारी ग्रामीणों का कहना है कि हालांकि गांव में रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को काम उपलब्ध करवाया जा रहा है, लेकिन इसके बाद भी गांव के कई लोग खाली बैठे है।
यदि रेत खदान में उन्हें लोडिंग का काम मिल जाता तो उन्हें काम के लिए भटकना नहीं पड़ता। उनकी मांग है कि मशीन से रेत लोडिंग का काम बंद हो और मजदूरों से रेत लोडिंग करवाई जाए,ताकि काम के लिए उन्हें भटकना ना पड़े। ग्रामीणि जब रेत घाट पहुंचे तो ठेकेदार ने तीन चैन माऊटिंग मशीन कहीं छिपा दिया था। एक मशीन खराब पड़ी हुई थी, जिस पर चढ़कर ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया। तो मजदूरोें को नहीं होती रोजी की कमी रेत खदान से जुड़े सूत्रों का कहना है कि एक खदान में प्रतिदिन औसत सौ हाइवा लोड़ होते है। प्रत्येक हाइवा का लोडिंग चार्ज पांच सौ रुपए लिया जाता है। ऐसे में लोडिंग से प्रतिदिन मजदूरों को 50 हजार रुपए मिलता। अगर दस मजदूरों के हिसाब से एक टीम बनाई जाती तो पांच टीम में 50 मजदूर काम करते। इस हिसाब से प्रत्येक मजदूर को प्रतिदिन एक हजार रुपए रोजी मिलती। लेकिन रेत ठेकेदार मजदूरों का पेट काटकर अपनी कमाई में जुटे हुए हह्यं। पैसा बचाने के चक्कर में वे मशीन से लोडिंग करवा रहें। ऐसे में मजदूरों को काम की तलाश में भटकना पड़ रहा है।
दलालों की सक्रियता
ग्रामीणों की बैठक में रेत के खेल में दलालों की सक्रियता का मुद्दा भी उठा। उनका आरोप है कि स्वयं को मीडिया समूह से जुड़े होने का दावा करने वाला एक दलाल अपनी ऊंची पहुंच का हवाला देकर रेत के खेल में अवैध काम को अंजाम देने में लगा हुआ है। यहीं वजह है कि अब तक ग्रामीणों की मांग पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बताया जाता है कि इस इस दलाल का पहुंच जिला स्तर के अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक हैं। इसी का फायदा उठाकर वे ग्रामीणों की मांग को दबाने में लगा हुआ है।