रायपुर(Raipur) छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में दूरगामी प्रभाव वाला निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति पर कार्यरत बहू से उसके वेतन के आधार पर सास को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
क्या है पूरा मामला
एसईसीएल हसदेव में कार्यरत भगवान दास के निधन के बाद उनके बेटे ओंकार को अनुकंपा नियुक्ति मिली थी। लेकिन ओंकार की असमय मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी को मनेंद्रगढ़ के केंद्रीय अस्पताल में अनुकंपा नियुक्ति पर रखा गया। इसके बाद ओंकार की मां ने परिवार न्यायालय में बहू के खिलाफ याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने 20,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता मांगा।
परिवार न्यायालय का फैसला
परिवार न्यायालय ने सास के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बहू को हर माह 10,000 रुपये देने का आदेश दिया था।
हाईकोर्ट में चुनौती और बहू की दलीलें
इस आदेश को बहू ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी और तर्क दिया कि:
उसे सिर्फ 26,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है, जिससे वह अपनी और 6 वर्षीय बेटी की जिम्मेदारी निभाती है।
सास को 3,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है।
उन्हें पति की मृत्यु पर 7 लाख रुपये की बीमा राशि प्राप्त हुई थी।
सास को खेती से सालाना एक लाख रुपये की आय होती है।
सास की देखरेख दूसरा बेटा करता है, जिसकी आमदनी 50,000 रुपये प्रतिमाह है।
हाईकोर्ट का स्पष्ट रुख
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने कहा:
अनुकंपा नियुक्ति किसी मृतक कर्मचारी की संपत्ति नहीं होती, बल्कि परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करने का साधन होती है।
बहू से उसकी नौकरी के आधार पर सास को भरण-पोषण देने की कानूनी अनिवार्यता नहीं बनती।
इसी के साथ हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया और बहू को भरण-पोषण से मुक्त कर दिया।
कानूनी दृष्टिकोण से अहम मिसाल
यह फैसला न केवल अनुकंपा नियुक्ति की कानूनी प्रकृति को स्पष्ट करता है, बल्कि पारिवारिक विवादों में भरण-पोषण के अधिकार और सीमाओं को भी नई दिशा देता है। यह निर्णय भविष्य में समान मा
मलों के लिए एक मिसाल के रूप में देखा जाएगा।