एक दिव्यांग महिला, जो ई-रिक्शा चलाकर कर रही है अपना जीवांव्यपन ।

कुछ खास कहानियां जिनको सामने लाना जरूरी है हमारे लिए ,समाज के लिए और हर उस व्यक्ति के लिए जो निराश है । कुछ खास कहानियां जो आपको प्रेरणा देगी ,जीने की राह देगी और साथ ही कभी ना हिमत हारने की सिख देंगी । आज की कहानी है अंजनी तिवारी की जो ई-रिक्शा चलाती है । दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने कभी हिमत नहीं हारी और अपने जीवन को बेहतर बनाने की सोच के साथ अपने बेटे को ले कर चलती रही । अंजनी की कहानी , उन्ही की जुबानी ।

मेरी शादी एक नार्मल व्यक्ति स्व. संजय तिवारी से आठ वर्ष पहले हुई थी । औरों की तरह मैं भी अपना जीवन सुख पूर्वक व्यतीत कर रही थी । करीबन आज से 4 साल पूर्व उन्हें बड़ी बीमारी से जूझना पड़ा, डॉक्टर से जांच कराने पर पता चला कि उनका 80% लिवर खराब हो गया है, जिसकी वज़ह से अब वो काम नहीं कर सकते । ऐसे में मेरे बेटे और पति दोनों की ही जिमेदारी अब मुझ पर आ गई थी । उस वक़्त ना मेरे पास कोई रोज़गार था, ना ही कोई पूंजी और नहीं कोई कारोबार जो पति के बाद मैं संभाल पाऊ । लोगो के सामने हाथ फैलाना पड़ा काम मांगे के लिए, पर लोगो ने काम नहीं दिया बल्कि ये बोल कर मज़ाक बनाया की ये अपंग क्या कर पाएंगी । लोगो की इन बातों को सुन कर बहुत दुःख होता था , जिंदगी कैसे जीयू ,बच्चें और पति को कैसे संभालू समझ नहीं आता था । तब मैंने सोचा कि क्यों ना घर से ही सिलाई का काम शुरू किया जाएँ ,काम शुरू भी किया पर आए उतनी नहीं हो पाती थी जितनी जरूरत होती थी । ऐसे में रोज सोचती थी कि मैं आखिर ऐसा क्या काम करू जिसमें मेरी आय भी अच्छी हो और मेरा समान भी बना रहें । कई मेहनो बाद मुझे ई-रिक्शा के बारे में पता चला और मैंने उसे चलाने की सोची । उसके आए से मेरे पति की दवाइयों का खर्च, बच्चे की पढ़ाई का खर्च साथ ही घर का खर्च भी चल जा रहा था । लम्बी बीमारी के बाद मेरे पति का देहांत मार्च 2019 में हुआ । पर आज मैं अपने आप से संतुष्ट हूं कि मैंने अपनी ज़िमेदारी बखूबी निभाई , मुझसे जितना बन पाया मैंने उनकी सेवा की और बच्चे को आज अच्छी शिक्षा दिला रही हूँ । मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि मेरा बेटा एक अच्छा इंसान बने, अच्छी शिक्षा पा कर अच्छे काम करें और एक दिन अपनी माँ पर गर्व करें । 

ये थी हमारी आज की कहानी श्रीमती यशा ¥ की रिपोर्ट 🖋️

 

Author: Sudha Bag

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