रायपुर। पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज पूज्यश्री बागेश्वर धाम सरकार ने विवेकानंद विद्यापीठ के सामने कोटा स्थित विशाल प्रांगण में निर्मित बागेश्वर धाम के कथा पंडाल में चतुर्थ दिवस शुक्रवार को श्रीराम चरित्र चर्चा एवं जन्म से जनकपुर तक की कथा के अंतर्गत कहा कि हम लोग जरा सा काम करने पर अभिमान से भर जाते हैं। इनसे सीखो भारत के लोगों धन्य हैं हनुमानजी जो रामजी का इतना बड़ा काम करके भी अभिमान से नहीं भगवान से भर गए। अहम की अकड़ ज्यादा चल नहीं सकती, मौत की घड़ी टल नहीं सकती, लूटकर दौलत भले ही जमा कर लो भैया, पाप की कमाई कभी फल नहीं सकती। इसीलिए अभियान में मत रहो, रावण ने अभियान किया था विनाश हो गया। अभिमान पतन का मुख्य द्वार है, जिसने भी अभिमान किया बिखर गया-मर गया, इसीलिए जो भी प्राप्त हो पद, रूप, सौंदर्य, ज्ञान, सिद्धि, प्रसिद्धी, नाम, धाम, मकान प्राप्त होए, यही कहना सब सब गुरुदेव का प्रसाद है, माता-पिता का आशीर्वाद है, हमारे रामजी की कृपा है। हम प्रार्थना ये करेंगे कि कथा में सम्मान नहीं हनुमान पाने आना चाहिए। सम्मान पाने संसार में जाना चाहिए, भगवान के द्वार को भगवान को पाने जाना चाहिए।
गुरुदेव विश्वामित्र संग श्रीराम व श्रीलक्ष्मणजी के मिथिला नगरी प्रवेश के प्रसंग पर महाराज ने कहाञ श्रीजनकजी महाराज जिनका नाम ही विदेह महाराज है। अर्थात् जिसे देह की सुध न रहे वह विदेह। ज्ञानी होकर भी जनकजी गुरुदेव विश्वामित्र को मिलने को आए। विश्वामित्र महामुनि आए, समाचार मिथिलापति पाए…। गुरुजी को लेकर ब्राह्मणों को लेकर स्वागत किया, आसन बिठाया। उतने में रामजी, लक्ष्मणजी आए। उनकी सुंदर छवि देखकर सुधी जनकजी भी बेसुध हो गए। दुनिया तुम्हें तब तक सुंदर लगेगी, जब तक तुम श्यामसुंदर को नहीं देखोगे और जहां श्यामसुंदर को एक बार देख लोगे तो दुनिया तुम्हें उनसे सुंदर नजर नहीं आएगी। भगवान हैं इतने सुंदर, इन्हें जो देखे सो दीवाना हो जाए। हमारी आंखों को रंग-बिरंगा देखने की बड़ी आदत है, वह भी एक जैसा नहीं बदल-बदल कर, आज जो देख लिया वह कल देखना नहीं चाहते। हर व्यक्ति की मानसिकता होती है कि वह कल कुछ नया देखे, कुछ नया खाए। कुछ नया पहनें, कुछ अलग तरीके से जुड़े। पर एक बात बोलें हमारे रामजी तो नित नए हैं। दुनियावालों एक बात कहें देखना ही है तो दुनिया को क्या देखें, दुनिया की सुंदरता देखोगे तो काम में फंसोगे, राम की सुंदरता देखोगे तो राम में फंसोगे। प्रियजनों देखना है तो…ये जो दो आंखें हैं हमारी श्याम से मिल र्गइं अब हमें और किसी से अखियां लड़ाने की फुरसत नहीं। जिसे देखकर अनुराग जागे, वैराग्य जागे वहीं परमात्मा की प्राप्ति है। लेकिन जहां राग जागे वहीं गड़बड़ है।
मिथिला में रामजी को जानकीजी के भवन में ही क्यों रोका गया। रामजी हैं भगवान और जानकीजी हैं भक्ति। भगवान तो भक्ति के ही भवन में रुकेंगे। जब भगवान आ जाएं तो भगवान को भक्ति के भवन में ठहराना चाहिए और भक्ति यदि तुमसे पूछे कि मैं कहां रहुं, तो कह देना तुम हमारे मन रूपी भवन में रहो। रामजी गुरु आज्ञा के बिना कहीं नहीं जाते, यही हमें सीखना चाहिए कि जब गुरु, माता-पिता हमारी जिंदगी में हों तो हमें गुरु, माता-पिता से आज्ञा लेकर ही कोई कार्य करना चाहिए। रामजी बगिया में माली से पूछे बिना फूल नहीं तोड़ते, यह हमें उनसे सीखना चाहिए।
‘माया की नगरी प्यारे, माधव का सुमिरन कर ले…जीवन ना जाए बेकार कर ले प्रभु से प्यार…’ इस मधुर भजन पर लाखों श्रद्धालु दोनों हाथ उठाए नृत्य कर झूमउठे