अनिरुद्धाचार्य महाराज की अवधपुरी मैदान गुढ़ियारी में स्व. सत्यनारायण बाजारी (मन्नू भाई) की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा


आरती पश्चात महाराज ने -बृज की गलियों में झूम-2 कर, मन की पतंग उड़ाओ, राधे-2 गाओ…! सुमधुर संगीतमय भजन से कथा का आरंभ किये. उन्होंने बताया कि जीवन का उद्देश्य सिर्फ ईश्वर की प्राप्ति ही है. उन्होंने पिता द्वारा पुत्र से फल लाने की कहानी सुनाते हुए बताया कि परमात्मा ने भी हमें फल लाने जीवन दिया है. हमारे कर्म फल ही हमारे सुख-दुख के कारण होते हैं.

जीवन में धन कमाना अच्छी बात है. परंतु धन को धर्म से जोड़ोगे तो लोक-परलोक दोनों बनेगा परंतु यदि इससे घमंड आ गया तो दोनों ही बिगड़ेगा. अपने धन का उपयोग समाज सेवा में लगायें.


महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि संतोष ही सुख का मूल है. उन्होंने बताया कि ब्रह्मा जी के चार मुख हैं. उनकी एक भुजा से शतरुपा और एक से मनु उत्पन्न होकर सृष्टि का आरंभ हुआ. उन्होंने बताया कि हम सभी रिषी-मुनियों की संतान हैं. रिषी-मुनियों के वंशज होने के कारण हम उनके गोत्र नाम से जाने जाते हैं.


महाराज ने आगे कहा कि हमारा जीवन चार आश्रम में बंटा था जिसमें सर्वश्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम है. गृहस्थ आश्रम में ही प्रभु राम-कृष्ण मानव रुप में जन्म लेकर अपनी लीला किये हैं.


महाराज ने कहा कि ब्राह्मण अब भिक्षाटन कर जीवन निर्वाह नहीं करते क्योंकि लोग अनुचित टिप्पणी करते हैं परंतु यह उनका धर्म है. भिक्षाटन करना और वेद ग्रन्थों का अध्ययन करना और अगर धन बच गया तो उसे सेवा कार्य में लगाना. अगर कोई ब्राह्मण आपके द्वार भिक्षा मांगने आये तो उसे निराश नहीं करना बदले में वह तुम्हें आशीर्वाद, दुआयें देकर ही जाएगा. उन्होंने कहा कि डार्बिन की यह थ्योरी पूर्णत: गलत है कि मनुष्य पूर्व में वानर थे. उन्होंने बताया कि वानर अनादिकाल से वानर थे, आज भी वानर हैं. मनुष्य पूर्व में भी मनुष्य थे आज भी मनुष्य हैं. महाराज ने आगे कहा कि भगवद गीता में गर्भ में शिशु के नौ माह की स्थिति का उल्लेख है जिसका चिकित्सा विज्ञान आज दावा कर रहा है. महाराजश्री ने कर्म की उपयोगिता को श्रीकृष्ण-अर्जुन और एक व्यक्ति के मन के भाव से समझाया कि कैसे जब व्यक्ति सिर्फ स्वयं के बारे में सोचता है तो उसे प्राप्त धन भी नहीं बचता और जब दूसरों के बारे में सोचता है तो कैसे उसकी सम्पत्ति में वृद्धि होते जाती है. उन्होंने परिवार में बेटियों की महत्ता को भी समझाया.

महाराज ने ध्यान लगाकर मन को एकाग्रचित्त किया जाता है यह सिखाया. कथा के मध्य में-मान मेरा कहना नहीं तो पछताएगा, मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिल जाएगा!! राम जी आने को तैयार हैं, मिलने को हम बेकरार हैं…! मंदिर भी बन गया अब रघुराई का, हमको डर कैसा जुदाई का…!! आदि सुमधुर संगीतमय भजनों में भक्तगण नाचते-झूमते रहे.


कार्यक्रम की व्यवस्था में ओमप्रकाश मिश्रा, विकास सेठिया, सार्थक राजपूत, राकेश दुबे, मिलन अग्रवाल, हेमन्त जैन, बबीता अग्रवाल, सत्या गुप्ता, सरिता अमृता राठौर, ममता सिंग, सरिता सोनी, पूनम तिवारी सहित सैकड़ों पदाधिकारी एवम् कार्यकर्तागण सक्रिय रहे. उक्त जानकारी मीडिया प्रभारी नितिन कुमार झा ने दी.

Author: Sudha Bag

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