13 अक्टूबर को मनाया जाएगा शरद पूर्णिमा का पर्व ,जिसकी शुरुआत 12 अक्टूबर को रात्रि 12:36 पर होगी । पूर्णिमा की पूजा एवं व्रत रविवार यानी 13 अक्टूबर को ही होगा । शरदपूर्णिमा की रात्री में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है । इस दिन के व्रत को कोजागार व्रत भी कहा जाता है , क्योंकि इस दिन माँ लक्ष्मी जी को जागृत किया जाता है । इस दिन माँ लक्ष्मी, नारायण एवं माता तुलसी की पूजा की जाती है ।
शरदपूर्णिमा के दिन ही जागरण का भी बहुत महत्व है , क्योंकि इसी दिन माता लक्ष्मी भ्रमण करने धरती पर आती है । यदि किसी घर पर, किसी भी सदस्य के द्वारा जागरण एवं व्रत किया जाए तो माँ लक्ष्मी अपनी कृपा दृष्टि उस घर पर जरूर करती है । साथ ही इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास लीला भी रचाई थी ।
हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा या महा पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है । पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हो कर धरती पर अमृत बरसाती है । पूरे उत्तर भारत मे आज के दिन ही खीर बनाकर रात को चाँद की चांदनी में उस खीर को रखा जाता है, फिर दूसरे दिन उसका सेवन अमृत प्रशाद के रूप में किया जाता है । मान्यता तो यह भी है कि आज के दिन चाँद की रोशनी में सुई धागा पिरोया जाता है जिसे हमारे नेत्रों की रोशनी बढ़ जाती है ।
कुछ बातों का विशेष ध्यान रखे :
चंद्रमा की चांदनी यदि गर्भवती महिलाओं की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है । शरद पूर्णिमा की चांदनी का अपना ही महत्व है परंतु यदि इस दिन हम भोग,विलास में लिप्त होते है तो शिशु विकलांग, या दर्दनाक बीमारी से ग्रसित हो सकता है । इसलिए इस दिन हमे पूजा,अर्चना, जप-तप करना चाहिए ताकि इसे हमारे शरीर का स्वास्थ्य बना रहे एवं मन शांत व प्रफुल्लित रहे ।बारहो महीने यह चांदनी गर्भ को एवं औषधियों को पुष्ट करती है परन्तु अमावस्या एवं पूर्णिमा को इसकी चांदनी को ग्रहण ना करें ।
🖋️छत्तीसगढ़, रायपुर से🖋️
✍️पत्रकार श्रीमती यशा ¥ , खबर छत्तीसगढ़ से✍️