रायपुर छत्तीशगढ़ में अमलीडीह और बूढ़ेश्वर मंदिर में किया गया वट सावित्री कथा महिलाओं ने पूरी श्रद्धा विधि विधान के साथ किया गया
हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत ( पड़ता है। ये व्रत सुहागिन महिलाओं के साथ-साथ कुंवारी कन्याएं भी करती हैं। विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना से रखती हैं तो कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए वट सावित्री पूजा करती हैं। इस साल वट सावित्री व्रत 19 मई को रखा जाएगा। जानिए इस व्रत की कहानी विस्तार से
पौराणिक कथा अनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। ये काम अठारह वर्षों तक जारी रहा। इसके बाद सावित्री देवी प्रकट हुई और उन्होंने वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। राजा को सावित्री देवी की कृपा से एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम सावित्री रखा गया।
वे कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। उस कन्या के लिए योग्य वर न मिलने से उसके पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर खोजने के लिए भेज दिया। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे जिनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उन्हीं के पुत्र सत्यवान का सावित्री ने पति के रूप में वरण किया।
ऋषिराज नारद को जब ये बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के महल पहुंचे और उन्होंने कहा कि हे राजन! आपकी कन्या ने जिसे अपना वर चुना है वो गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं लेकिन उनकी आयु बहुत छोटी है। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।
ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति चिंता में डूब गए। सावित्री ने अपने पिता के दुखी होने का कारण पूछा, तो उन्होनें कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वो अल्पायु हैं। अत: तुम्हें किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। पिता की बात सुनकर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं।
सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं कि मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। जब सावित्री ने अपने पिता यानी राजा अश्वपति की बात नहीं मानी तो उन्हें अपनी पुत्री सावित्री का विवाह सत्यवान से करना पड़ा। सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में लग गई। समय बीतता चला गया। सत्यवान की मृत्यु का दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर उन्होंने पितरों का पूजन किया।
हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल गये साथ में सावित्री भी गईं। लकड़ी काटने के लिए सत्यवान जैसे ही एक पेड़ पर चढ़े। उन्हें अचानक से सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री ये देखकर परेशान हो गईं।
सत्यवान के सिर को अपनी गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज पहुंचे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी यमरजान के पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मानी।
सावित्री की निष्ठा देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई वर मांगों। सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने वरदान दे दिया और कहा कि अब जाओ
लेकिन सावित्री अब भी अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा। तब सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने सावित्री को ये वरदान भी दे दिया। लेकिन सावित्री अब भी पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने के लिए कहा इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने ये वरदान भी सावित्री को दे दिया।
लेकिन इस वरदान के मिलने के बाद भी सावित्री वापस नहीं लौटीं इस पर सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है। यमराज जी समझ गए और सावित्री की बात सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति की मृत्यु हुई थी।
वट सावित्री व्रत का महत्व
सावित्री के आते ही सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य के लिए चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है और उनके सारे दुख दूर हो गए। कहते हैं वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से जीवन साथी को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशियां भी बनी रहती हैं।