आजकल शादी विवाह के अवसर पर बढ़ चढ़ कर खर्च करने की प्रवृत्ति विकराल रूप लेती जा रही है साथ ही एक दूसरे की देखा-देखी में अधिक दहेज देने की परंपरा सी बन गई है। जिसके कारण माता पिता के लिए नाजों से पली अपनी लाडली बेटी के सारे अरमान पूरे करने का दायित्व निभा पाना बहुत ही तकलीफदेह होता जा रहा है। एक ओर वह पिता अपने जिगर के टुकडे को किसी अजनबी के हाथों सौंपता है जिसे हम ‘कन्यादान’ कहते हैं दूसरी तरफ वह अपने जीवन भर की पूंजी इस परपंरा को निभाने में लगा देता है। विवाह करने वाले माता पिताओं की इस पीड़ा को समझते हुए सेवा ५ पथ संस्था सामूहिक ‘कन्यादान’ करने की पहल की जा चुकी है।
समाज में हो रहे आडंबर व बहुत ही खर्चीले विवाह करने वाले परिवारों को कम खर्च में भी आदर्श व्यवस्थित समूह ‘कन्यादान’ किये जा सकने का संदेश देना…
उन कन्याओं का विवाह कराना जिनका किन्हीं कारणों से शादी के सपनों का पूरा होना संभव न हो…. उनके भी अरमान होते है कि उनका भी धूमधाम से विवाह व रिसेप्शन हो… उनकी भी सारी खुशियाँ पूरी हो..