गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर केबल ब्रिज हादसे में अब तक 130 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. अभी भी नदी से शवों का निकलना जारी है. हादसे के कई वीडियो भी सामने आ चुके हैं. इसमें साफ देखा जा सकता है कि पुल पर लोगों की भारी भीड़ मौजूद थी. अचानक से पुल टूटता है और लोगों के चिल्लाने की आवाजें आना शुरू हो जाती हैं. नदी में डूबते लोग खुद को बचाने की गुहार लगाते हैं. यह पुल 140 साल पुराना था और हाल ही में मरम्मत किए जाने के बाद इसे दोबारा खोला गया था. अब इस हादसे के बाद दूसरे शहरों में मौजूद ऐसे ही पुलों की हालत को लेकर चिंता जताई जा रही है।
ऐसा ही विश्व प्रसिद्ध पुल ऋषिकेश का लक्ष्मण झूला भी है. पुल का सपोर्टिंग वायर टूटने के कारण उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में इस पर आवाजाही बंद कर दी थी. मगर, सरकार के फैसले ने स्थानीय लोगों की परेशानी बढ़ा दी थी. बाद में लोगों की परेशानी देखते हुए पुल पर पैदल जाने की इजाजत दी गई थी. हालांकि, पुल पर पहले दोपहिया वाहनों की आवाजाही की भी होती थी. मगर, पुल कमजोर पड़जाने के चलते दोपहिया वाहनों की पर भी रोक लगा दी गई थी।
अप्रैल 2022 में पूरी तरह से इस्तेमाल पर लगी है रोक
तीर्थ नगरी ऋषिकेश के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखने वाले लक्ष्मण झूला के उपयोग पर 13 जुलाई 2019 को रोक लगाई गई थी. टिहरी और पौड़ी को जोड़ने वाले इस पुल से केवल पैदल जाने वालों को ही जाने की अनुमति थी. हादसे के डर के चलते 13 अप्रैल 2022 को इस पुल से पैदल निकलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
चंडीगढ़ की कंपनी के पास था पुल निर्माण का काम
लक्ष्मण झूला की सपोर्टिंग वायर टूटने के कारण इसे उपयोग के लिए बंद किया गया था. पुल बनाने का काम चंडीगढ़ की एक कंपनी के पास था. मगर, टेंडर आवंटन के दौरान विवाद खड़ा हो गया. हिलवेज कंस्ट्रक्शन कंपनी की तरफ से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. विभाग के अधिकारियों पर कोर्ट की अवमानना का केस दायर किया गया था।
बजरंग सेतु निर्माण के दौरान टूटा था सपोर्टिंग वायर
बताया जाता है कि लक्ष्मण झूला के पास ही बजरंग सेतु का निर्माण किया जा रहा है. सपोर्टिंग केवल टूटने की वजह भी सेतु ही था. खबर के मुताबिर मिट्टी उठाने वाली करीब 600 किलो वजन की बकेट से टकराने की वजह से पुल का बैलेंस बनाने वाली सपोर्टिंग वायर टूट गई थी. ऋषिकेश के स्थानीय लोगों का कहना है कि बजरंग सेतु नाम का नया पुल बनाया जा रहा है. अभी केवल खुदाई का काम चल रहा है।
पहले था रस्सों का झूला
पहले लक्ष्मण झूला जूट की रस्सियों से बनाया गया था. रस्सों के इस पुल पर लोगों को छींके में बिठाकर खींचा जाता था. साल 1889 में कोलकता के सेठ सूरजमल झुहानूबला ने लोहे की तारों से इसका दोबारा निर्माण कराया था. उन्हें स्वामी विशुदानंद से इसकी प्रेरणा मिली थी. साल 1924 में आई तेज बाढ़ में झूला बह गया था. बाद में फिर से इसकी मरम्मत कर पहले के ज्यादा मजबूती के साथ इसका निर्माण किया गया था. लक्ष्मण झूला की पुरातन कथा लक्ष्मण झूला के साथ पौराणिक कथा भी जुड़ी है. कथनानुसार, भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था।