गरियाबन्द जिले के फिंगेश्वर ब्लॉक मुख्यालय के अंतिम छोर स्थित ग्राम पंचायत लचकेरा इन दिनों प्रवासी पक्षियों के कलरव से गुंजायमान हो रहा है. ग्राम में प्रजनन के लिए एशियन ओपन बिल स्ट्रोक ने एक बार फिर दस्तक दे दी है. पक्षियों के गांव में आना ग्रामीण इसे मानसून का दस्तक जानकर कृषि कार्य में जुट जाते हैं. यहीं नहीं इन प्रवासी पक्षियों को गांव वाले देवदूत की तरह मानते हैं, और इनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं।
जून माह की शुरुआत होते ही इन पक्षियों का लचकेरा गांव में आना शुरू हो जाता है, और जैसे-जैसे बारिश अधिक होगी. नदियों में पानी का बहाव बढ़ेगा तो इसकी संख्या में लगातार वृद्घि होती जाएगी. लचकेरा गांव के पीपल, आम, कहुआ, इमली के पेड़ इन पक्षियों का बसेरा हैं. फिलहाल, गांव में नजर आ रहे करीबन 5 हजार पक्षियों की संख्या आने वाले समय में बढ़कर 8 से 10 हजार तक हो जाएगी।
जून माह की शुरुआत होते ही इन पक्षियों का लचकेरा गांव में आना शुरू हो जाता है, और जैसे-जैसे बारिश अधिक होगी. नदियों में पानी का बहाव बढ़ेगा तो इसकी संख्या में लगातार वृद्घि होती जाएगी. लचकेरा गांव के पीपल, आम, कहुआ, इमली के पेड़ इन पक्षियों का बसेरा हैं. फिलहाल, गांव में नजर आ रहे करीबन 5 हजार पक्षियों की संख्या आने वाले समय में बढ़कर 8 से 10 हजार तक हो जाएगी।
ग्रामीणों की माने तो मानसून का शुभ संकेत लेकर इन पक्षियों का आना शुरू होता है. एशियन ओपन बिल स्ट्रोक के नाम से जाने जाने वाले इन पक्षियों का यह प्रजनन काल होता है. दीपावली के बाद बच्चों के बड़े होते ही यह गांव छोड़ देते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि इन पक्षियों के आने का क्रम पीढ़ियों से चला आ रहा है. वे बचपन से इन्हें देखते आ रहे हैं।
गांव वाले इन पक्षियों को देवदूत की तरह मानते हैं, जिनके आने से गांव में अच्छी बारिश के साथ अच्छी फसल की उम्मीद जगती है. यही वजह है कि गांव में 6 से 7 माह तक रहने वाले इन पक्षियों की देखभाल भली-भांति करते हैं. यही नहीं इन पक्षियों को अगर कोई गांव वाला मारता है, तो उसके लिए दंड का भी प्रावधान रखा गया है. उस व्यक्ति को 2000 रुपए देना होता है. इसके अलावा कोई व्यक्ति बार-बार यह अपराध करता है तो स्थानीय बस्ती समिति उस व्यक्ति के खिलाफ थाने में अपराध तक दर्ज कराती है।
दूर देश से यात्रा कर आते हैं पक्षी
प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का वैज्ञानिक नाम एनास्टोमस ओसिटेंस है. यह पक्षी बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, भारत, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैण्ड व वियतनाम में बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं. प्रायः अन्य पक्षियों की तरह इस पक्षी का प्रजनन काल भी जुलाई माह में प्रारंभ होता है. प्रजनन के लिए यह पक्षी प्रायः उन स्थानों की तलाश करते हैं, जहां पानी और पर्याप्त आहार की उपलब्धता हो।
बरसात के दिनों में बाहर आते हैं नन्हें पक्षी
छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्रायः महानदी और उनकी सहायक नदियों के आसपास के गांवों में देखे जाते हैं. छत्तीसगढ़ के ऐसे करीब 10 से 12 गांव है, जहां ये पक्षी देखे जाते हैं. ये पक्षी गांव के बबूल, पीपल, बरगद व इमली के पेड़ों में घोसला बनाकर रहे हैं. इसके साथ ही ये प्रणय क्रिया भी जारी रखते हैं. जुलाई माह आते मादा पक्षी घोसला में अण्डा दे देती है, और फिर कुछ समय बाद जब नन्हें पक्षी बाहर आते है, तो पूरा गांव कलरव से गुंजायमान होने लगता है।
कीड़े-मकोड़े खाकर फसलों की करते हैं रक्षा
लचकेरा गांव में प्रजनन के लिए पहुंचे प्रवासी पक्षियों एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का खास आहार मछली, घोंघा, केकड़ा और अन्य कीट होते हैं. प्रवासीय पक्षी इन सभी जीव-जन्तुओं को भोजन के रूप में लेते हैं. यहीं नहीं गांव के खेतों के कीटों को भी ये पक्षी चुन-चुनकर खा जाते हैं, जिससे गांव के किसी भी किसान के खेतों की फसल में कोई बीमारी नहीं लगती और हर साल किसानों को फसल में अच्छा मुनाफा होता है. किसानों की माने तो इन्हीं देवदूतों के कारण आज तक गांव में ना ही बीमारी आई और ना की अकाल पड़ा।