रायपुर : ईश्वर साहू एक गरीब किसान है, इनको भाजपा ने साजा विधानसभा से टिकट दिया, जहाँ उन्होंने रविंद्र चौबे जो 28 सालों से विधायक थे उन्हें हराया। एक आदमी ने कद्दावर नेता को करारी शिकस्त दी, यहाँ जनता ने न्याय किया। एक सामान्य आदमी का किसी बड़े नेता को हराना बड़ा मायने रखता है। बेमेतरा के बिरनपुर गांव में बीते आठ अप्रैल को दो स्कूली बच्चों के विवाद में हिंसा भड़क गई थी। मामूली झगड़े में हिंदू और मुस्लिम समुदाय आमने-सामने आ गए थे और दोनों पक्षों में खूनी संघर्ष हुआ था। इस दौरान भुनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई। बेमेतरा में हुए हिंसक झगड़े में भुनेश्वर साहू की जान चली गई थी। दोनों पक्षों की तरफ से आगजनी की घटनाएं हुईं। घर जलाए गए। इन हिंसक झड़पों में भुवनेश्वर साहू की हत्या हुई।
साहू की भावनात्मक अपील और भाजपा की यह रणनीति रही असरदार?
ईश्वर साहू ने भावनात्मक ढंग से यह चुनाव लड़ा, उन्होंने अपने साक्षात्कार में बताया की भाजपा ने उन्हें टिकट देकर कहा कि ईश्वर तुम्हें जनता ही न्याय देगी, अब मै न्याय कि गुहार लेकर आपके पास आया हूँ। इस सीट पर करीब 60 हजार साहू वोटर हैं। वह निर्णायक होते रहे हैं। साहू समाज का एकमुश्त वोट ईश्वर साहू के पक्ष में पड़े इसके लिए भाजपा ने पूरी कोशिश की। साहू समाज के अलावा लोधी समाज बड़ी संख्या में इस सीट पर हैं। भाजपा की कोशिश रही थी कि सभी जातियों को ईश्वर के साथ खड़ा किया जाए। ईश्वर साहू को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने चुनावों को धार्मिक रंग देने की कोशिश की।
ईश्वर ने 28 सालों तक विधायक रवींद्र चौबे को हराया :
इधर कांग्रेस का दावा भी कमजोर नहीं था। रवींद्र चौबे कांग्रेस के पुराने और कद्दावर नेता हैं। 1985 में वह पहली बार विधायक बने थे। अविभाजित मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ़ में कई विभागों के मंत्री और नेता प्रतिपक्ष रह चुके रविंद्र चौबे 28 सालों तक विधायक रहे। 2013 के चुनावों में पहली बार उन्हें 9620 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि अगले ही चुनाव में 2018 में उन्होंने फिर से 31,535 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। जिसे इस चुनाव में एक सामान्य आदमी ईश्वर साहू ने हरा दिया।
बतौर निर्दलीय विधायक चुनाव लड़कर अजीत कुकरेजा ने बनाया एक खास रेकॉर्ड :
अजीत कुकरेजा के पिता आनंद कुकरेजा विगत 40 वर्षों से कांग्रेस की राजनीति में सक्रीय रहे, उन्हीं के पुत्र है अजीत कुकरेजा जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का साहस किया, इन्होने पार्टी से पहले भी उत्तर विधानसभा से टिकट माँगा और पिछली बार इन्होने डमी केंडीडेट के लिये नामांकन भरा था। लेकी पार्टी ने इन्हें टिकट नहीं दिया, साथ ही भाजपा द्वारा सिन्धी समाज के एक प्रत्याशी को इसी विधानसभा से टिकट दिया जाता है, जो कि इस बार नहीं दिया गया, इन दोनों घटनाओं से सिन्धी समाज ने अजीत कुकरेजा को चुनाव में समर्थन देने का तय किया जिसको लेकर अजीत कुकरेजा ने भी निर्दलीय लड़ने का साहस दिखाया। अजीत कुकरेजा का जमीनी आधार काफी मजबूत रहा है, वे तेलीबांधा और अवन्ती विहार क्षेत्र में मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे है।
चुनाव परिणाम में अजीत कुकरेजा ने दिया कांग्रेस को करारा झटका :
जहाँ 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कुलदीप जुनेजा लगभग 16000 वोटों से जीते थे, उन्हें कुल 59000 वोट मिले। अब उन्हीं में से अजीत कुकरेजा ने उन्हें लगभग 23000 वोटों का झटका दिया जिससे वो भाजपा के प्रत्याशी से लगभग 13000 वोटों से हार गये। कुलदीप जुनेजा ने पार्टी के शीर्ष नेताओं से कहा था मुझे टिकट दें या ना दें, लेकिन अजीत को ना दें, उन्हें कहीं ना कहीं ये डर रहा होगा कि अजीत की एक बार की जीत हमेशा के लिये स्थायी हो जायेगी। क्षेत्रीय पार्टियों के मजबूत प्रत्याशी भी आज तक 23000 वोट नहीं जुटा पाए, बल्कि 1500 वोटों से आगे कोई बढ़ा ही नहीं, वहीँ बिना पार्टी के आधार पर इतने वोटों की बढ़त अजीत कुकरेजा को एक बड़े और महत्वपूर्ण नेता के स्तर तक पहुंचा देती है, उन्हें समाज के साथ समस्त मतदाताओं का बराबर समर्थन मिला। यदि कांग्रेस उन्हें अगली बार टिकट देती है तो वो निश्चित ही जीत दर्ज करेंगे, इसका दूसरा कारण है उत्तर विधानसभा का प्रत्याशी हर बार बदल भी जाता है। निर्दलीय रूप से 23000 वोट जुटाना ऐतिहासिक है।