किसानों के द्वारा 6 फरवरी को सरकार की किसान आंदोलन विरोधी रुख के खिलाफ देशव्यापी चक्का जाम आन्दोलन के साथ पूर्ण एकजुटता व्यक्त करते हुए रायपुर बॉरियाखुरद, रसनी, संतोषी नगर के साथ ही भिलाई, राजहरा, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, सरगुजा सहित सैकड़ों स्थानों पर दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक छत्तीसगढ़ में भी चक्का जाम क्किया गया । इसमें किसानों के अलावा ट्रेड यूनियन, जनसंगठन और नागरिक संगठन के साथ ही रागकर्म,, कला, साहित्य से जुड़े हुए संगठनों के कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में शिरकत किए । सीटू के राज्य सचिव धर्मराज महापात्र ने उक्त जानकारी देते हुए कहा कि रायपुर में पुराने धमतरी रोड में बोरियाखूर्द में दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक चक्का जाम किया गया । यहां रंगकर्मियों ने जनगीत गए, प्रदर्शन व सभा की । इस सभा को संबोधित करते हुए एम् के नंदी, धर्मराज महापात्र, एस सी भट्टाचार्य, राकेश साहू, अरुण काठोटे, प्रदीप गभ्नें, राजेश अवस्थी, के के साहू, नवीन गुप्ता, प्रदीप मिश्रा, विभाष पौतुंदी, निसार अली, शेखर नाग, साजिद रजा, पी सी रथ, मनोज देवांगन, प्रवीण दीक्षित ने किसान आंदोलन को कुचलने दिल्ली, उत्तर प्रदेश में आज सुबह से ही कई किसान नेताओ की गिरफ्तारी पर जबरदस्त गुस्से का इजहार किया । वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार के दमन के आगे देश के किसान झुकेंगे नहीं बल्कि इससे यह आन्दोलन और तेज होगा , आज देश भर में सरकार के तमाम हथकंडों के बाद भी देश केंगर कोने में किसान के साथ एकता के लिए चक्का जाम में जनता की जबरदस्त भागीदारी इसी का ऐलान है । वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार विदेशी व घरेलू कारपोरेट को किसानों की जमीन व बाजार सौंपने की अपनी योजना के लिए किसानो कें खिलाफ ही ‘युद्ध’ छेड दिया है । केन्द्र सरकार निम्न स्तर पर पहुंच गयी है। वह पुराने जमाने की तरह अपने ‘किले’ की रक्षा करने खिले, कांटे, दीवार लगाकर किसान को रोकने का कुचक्र, चला रही है । पूरे देश मे किसान आंदोलन को बदनाम करने के उनके हथकंडों के खिलाफ इसलिए देश के लोगों में जबरदस्त गुस्सा
है ।
वक्ताओ ने कहा कि किसानों की एक ही मांग थी कि देश की राजधानी में उनकी आवाज़ उठाई जा सके और उसकी सुनवाई हो। पर ‘कानून के रक्षकों’ ने उन्हें बाहर कर दिया, वह भी ‘गैरकानूनी’ ढंग से। इससे पहले, 26 जनवरी को सुरक्षा व इंटेलिजेंस विभाग के सहयोग से लाल किले पर धार्मिक झंडा फैरा कर आरएसएस-भाजपा के समर्थकों ने किसान आंदोलन की दिशा बदलने की कोशिश की। इस योजना में ट्रैक्टर परेड को रास्ते में कई जगह विभाजित भी किया गया और भटकाया भी गया, ताकि अफरातफरी का माहौल बने। देश के शासन के अपमान को व्यापक स्तर पर महसूस किया गया। दोषी आज तक नहीं पकड़े गए हैं और केन्द्र की सरकार, आरएसएस-भाजपा नेता, उनका सोशल मीडिया लगातार देश के किसानों पर दोष मढ़ रहे हैं।
धरनास्थलों से इंटरनेट रोक दिया गया है ताकि सच को छिपाए रखा जाए, पानी, खाना अपूर्ति मार्ग व बिजली रोक दी गयी है। कई झूठे केस लिखे गए हैं, 100 से ज्यादा किसान गिरफ्तार हैं और कई अब भी गायब हैं।
अब यह पूरी तरह से स्पष्ट है, देश के आजादी के 74वें वर्ष में सरकार देश के अन्नदाता और खाद्य सुरक्षा को है कार्पोरेट के हाथ नीलाम कर देना चाहती है और उनके निव इंडिया के नारे की भी यही हकीकत है । सरकार उन कानूनों को बचाना चाहती है जो विदेशी व घरेलू पूंजी द्वारा किसानों का जीवन व जीविका के साधनों को नष्ट कर देंगे। दूसरी ओर किसान, जिनके युवा बहुत शालीनता के साथ, शांतिपूर्वक, सचेत व प्रेरित ढंग से इस आंदोलन को चला रहे हैं। वे नारे लगा रहे हैं ‘पहले होगी कानून वापसी, तभी होगी घर वापसी’ और ‘एमएसपी का कानून बनाओ’। यह सरकार को समझना है कि किसानों की आवाज को इस्पात व कांक्रीट से रोकना असम्भव है। यह और ऊंचे स्वर में गूंजेगी। मोदी सरकार के फासीवादी तरीके उन्हें नहीं दबा सकती । किसान यह संघर्ष अंत तक लड़ने के लिए संकल्पित है और देश के आम नागरिक उनके साथ हैं ।
महापात्र बे बताया कि आज के आन्दोलन में सीटू के अलावा, तृतीय वर्ग शास कर्म संघ, बीमा कर्मी, माकपा, एस एफ आई, जनवादी नौजवान सभा, इपटा, छत्तीसगड़ किसान सभा और अन्य जनसंगठन के कार्यकर्ता शामिल थे । उन्होंने कहा कि किसानों के साथ यह लड़ाई अंत तक जारी रहेगी ।र्त्र