केंद्र सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी तीनों दमनकारी कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली के सीमाओं में जारी किसान आंदोलन एवं कृषि बिल पर सुनवाई करते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कानून पर रोक लगाते हुए किसानों की समस्या को सुलझाने के लिए कमेटी का गठन किया गया है धमतरी जिला में किसान आंदोलन के समर्थन में लगातार संघर्षरत संयुक्त मोर्चा के अधिवक्ता शत्रुहन सिंह साहू राष्ट्रीय मतदाता जागृति मंच के संजय चंद्राकर राष्ट्रीय किसान मोर्चा के टिकेश्वर साहू भुनेश्वर साहू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा लाये गए कॉरपोरेट परस्त किसान , कृषि और आम उपभोक्ता विरोधी कानून को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून लागू करने की मांग को लेकर अध्यादेश लाये जाने के समय से ही विरोध जारी है। न्यायालय ने इस बात पर कहीं भी विचार नहीं किया कि अध्यादेश के जरिए लाया गया कानून संवैधानिक है या नहीं, क्योंकि कृषि राज्य का विषय है और राज्य को पूछे बिना ही कानून बनाया गया है। सरकार से किसानों का दो ही माँग है तीनों कृषि कानून रद्द करो और न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करो लेकिन हठधर्मी केन्द्र की मोदी सरकार इसका समाधान करने में असफल साबित हुआ है।इस असफलता को ढंकने के लिए ही न्यायालय का सहारा लिया है। कानून पर रोक लगाना मोदी का नैतिक हार जरूर है परंतु इसके पीछे का लक्ष्य किसान आंदोलन जो जन आंदोलन का स्वरूप ले लिया है को कमजोर करना है जिस पर न्यायालय की सहमति दिखाई देती है क्योकि न्यायालय के द्वारा बनाई गई समिति में सरकार के समर्थक जो शुरू से ही इन तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते आ रहे हैं ऐसे लोगों को कमेटी में शामिल करना कमेटी की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करता है यही कारण है कि किसान संगठनों ने कमेटी का बहिष्कार कर दिया है। क्योंकि किसानों का आंदोलन कृषि क्षेत्र के निगमीकरण के खिलाफ और खाद्य सुरक्षा की अधिकारों का रक्षा करना है। किसान ही नहीं बल्कि आम उपभोक्ता भी समझ चुके हैं कि यह कानून चंद पूंजीपतियों के लिए असीमित मुनाफा बटोरने के लिए सुविधा देने वाली है। मुक्त बाजार के जरिये किसानों का खेत और खेती छीनना चाहते हैंैैंैंैैैंैैंैंैैंैैंैैैंैैंैंैैैंैैंैंै