पत्रकारो से चर्चा करते हुये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि बीजापुर के पीडिया में विगत दिनों सुरक्षा बलो एवं नक्सलियो के बीच मुठभेड़ की खबर सामने आई थी। 10 मई 2023 को हुये इस मुठभेड़ में 12 लोगो की मौत हुई थी तथा इस घटना में 6 लोग घायल हुये, जिसके संबंध में पुलिस का दावा था कि मारे गये सभी लोग नक्सली थे। लेकिन घटना के बाद ग्राम पीडिया और ईतवार के ग्रामीणों का कहना है कि घटना में मारे गये सभी लोग नक्सली नहीं थे। ग्रामीणों के इस दावे के बाद प्रदेश कांग्रेस ने घटना की वस्तुस्थिति जानने एक जांच दल का गठन किया था जो मौके पर गई तथा ग्रामीणों से बात-चीत कर घटना के संबंध में जानकारी एकत्र किया।
दिनांक 16.05.2024 दिन गुरुवार को जांच दल प्रातः 10ः00 बजे बीजापुर से पीडिया के लिए संयोजक संतराम नेताम, सदस्यगण मान. विधायक इन्द्रशाह मंडावी, विक्रम मंडावी, जनकलाल ध्रुव, श्रीमती सावित्री मंडावी, रजनू नेताम, शंकर कुडियम एवं छविन्द्र कर्मा रवाना हुए। अस्वस्थ होने के कारण पूर्व विधायक श्रीमती देवती कर्मा जांच दल में शामिल नहीं हो पाई।
पीड़ित परिवार के परिजन श्रीमती सुक्की कुंजाम, कु. ललिता, श्रीमती अवलम समली, बुधरू राम बारसे, श्रीमती पोदिया, श्रीमती बोदे से अलग-अलग पुछताछ कर ब्यान लिया गया जिन्हांने अपने ब्यान में बताया कि पीडिया नक्सली मुठभेड़ में मल्लेपल्ली निवासी बुधू ओयाम, पालनार निवासी कल्लू पुनेम, ईतावार निवासी-लक्खे कुजाम, उण्डा छोटू, उरसा छोटू सुक्कू ताती, चैतु कुंजाम, सुनीता कुजाम, क जागो बरसी, पीडिया निवासी सन्नु अवलम, भीमा ओयाम, दुला तामो को पुलिस ने नक्सली बताकर मार दिये। ईत्तावार निवासी कु. कुंजाम गुल्ली, कु. लेखा देवी, कुंजाम जिला, कुंजाम बदरू एवं पीडिया निवासी पोयाम नन्दू को घायल होना बताये। उन्होने यह भी बताया गया है कि मृतक मल्लेपल्ली निवासी बुधू ओयाम एवं पालनार निवासी कल्लू पूनेम नक्सली गतिविधियों में संगम सदस्य के रूप में कार्य करते थे। बाकि शेष मृतक व घायल किसी भी प्रकार के नक्सली गतिविधियों में शामिल नहीं थे। पुलिस निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बताकर ईनाम एवं प्रमोशन लेने के लिए घटना को अंजाम दिये है घटना का न्यायिक जांच होना चाहिए।
घटना का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है कि जिला बीजापुर के थाना-गंगालूर के अतिसंवेदनशील गांव पीडिया व ईतावर के ग्रामीण दिनांक 10.05.2024 को सुबह करीब 6ः00 बजे पीडिया जंगल में तेन्दुपत्ता तोडने गये थे इसी बीच पुलिस गश्त करते हुए पीडिया जंगल पहुंचा मृतक व घायल लोग पुलिस को देखकर भागने लगे कुछ लोग पेड के ऊपर चढ़ गये। इसी दौरान पुलिस अंधाधुंन फायरिंग करना शुरू कर दिया जिसमें 12 लोगों का घटना स्थल पर ही मौत हुआ शेष 6 लोगों का अभी भी जिला अस्पताल में उपचार चल रहा है। पीडित परिवार व ग्रामीणों के अनुसार मल्लेपल्ली निवासी बुधू ओयाम, पालनार निवासी कल्लू पुनेम नक्सली गतिविधियों में संगम सदस्य के रूप कार्य करते थे। शेष मृतक व घायल कभी भी किसी भी प्रकार के नक्सली गतिविधियों शामिल नहीं थे और न ही कोई भी उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं था। पूछताछ से ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव 2 लोगों को छोडकर सभी मृतक व घायल लोग गांव में सामान्य जीवन यापन करते थे जिनको पुलिस ने नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ में आदिवासियों को मारा है।
ग्रामीणों की शिकायते बेहद ही गंभीर और संवेदनशील है। आरोप पुलिस पर लगे है। आरोपों को गंभीरता को देखते हुये यह आवश्यक है कि इस मामले की उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच की जानी चाहिये। कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की निगरानी में इस मुठभेड़ की जांच कराई जाये।
कांग्रेस राज्य में शांति बहाली के सभी संवैधानिक और कानूनी प्रयासो में राज्य सरकार के साथ खड़ी है। सुरक्षा बालों की कार्यवाही में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि किसी भी निर्दोष की हत्या नहीं हो। बस्तर के आदिवासियों की जान माल की कीमत पर कोई भी समझौता कोई भी कार्यवाही कांग्रेस पार्टी को मंजूर नही है।
*भाजपा झीरम का सच सामने नहीं आने देना चाहती-दीपक बैज*
झीरम में अभी तक हुई किसी भी जांच में घटना के राजनैतिक षड़यंत्र की दिशा में कोई जांच नहीं हुई। न्यायिक जांच आयोग के कार्यकाल को जब कांग्रेस सरकार ने बढ़ाया तथा जांच के दायरे में घटना के षड़यंत्र को जोड़ा तब तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक हाईकोर्ट से स्टे लेकर आ गये। भाजपा झीरम की जांच रोकना क्यों चाहती है? कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हमारी सरकार ने एसआईटी बनाकर षड़यंत्र की जांच करने का प्रयास किया, तब भी धरम लाल कौशिक एसआईटी की जांच रोकने हाई कोर्ट गये। एनआईए ने इस मामले की जांच बंद कर दिया था, एनआईए ने 24 सितंबर 2014 को अदालत में पहली चार्जशीट दाखिल किये, इसके बाद 28 सिंतबर 2015 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश किया, अर्थात एनआईए ने जांच बंद कर दिया था, लेकिन जैसे ही राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन किया एनआईए ने फिर से जांच शुरू कर दिया और राज्य की एजेंसी के जांच को बाधित किया। कानूनन जब तक एनआईए मामले की फाइल राज्य को वापस नहीं करती एसआईटी जांच शुरू नहीं कर सकती थी। कांग्रेस के पूर्ववर्ती राज्य सरकार द्वारा बार-बार मांगे जाने के बावजूद एनआईए ने झीरम की केस फाइल नहीं दिया। एनआईए ने भी एसआईटी की जांच को रोकने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया, बाद में हाईकोर्ट ने एनआईए के स्टे को खारिज कर दिया। एनआईए हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी जहां सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2023 को एनआईए की याचिका को खारिज कर दिया। लेकिन तब तक राज्य में सरकार बदल गयी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्य की एसआईटी के जांच के रास्ते खुल गये। राज्य सरकार दरभा थाने में पीड़ित परिवारों की रिपोर्ट के आधार पर एसआईटी की जांच शुरू करें। झीरम मामले के 11 साल पूरे होने के बावजूद पीड़ितों के परिजनो और घायलों को न्याय नहीं मिला। भाजपा की सरकारों ने हमेशा झीरम की जांच को रोकने का प्रयास किया। झीरम हमले में कई घायलों और पीड़ितों और प्रभावितों तक से अब तक एनआईए ने बयान नहीं लिये है। यह आरोप पीड़ित और उनके परिजनों ने लगाया है। आखिर इतनी परदेदारी क्यों? किसको बचाने के लिये, किसके इशारे पर जांच की दिशा भटकायी जा रही है? भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भय है कि झीरम का सच आने से उनके षड़यंत्र बेनकाब हो जायेंगे।
पत्रकार वार्ता में सांसद फूलोदेवी नेताम, जांच कमेटी के सदस्य संतराम नेताम, इंद्र शाह मंडावी, सावित्री मंडावी, वरिष्ठ नेता डॉ. शिवकुमार डहरिया, प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदू, प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला, गुरुमुख सिंह होरा, शकुन डहरिया, वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर, दीपक मिश्रा, सुबोध हरितवाल, सुरेंद्र वर्मा उपस्थित थे।