आज दिव्यांग दिवस पर विशेष व्यक्ति की विशेष कहनी। ।

जीवना सुविधा और साधनों के दौर में बसंत साहू एक जीवटता का नाम है । दुर्घटना ने उनसे चलने की क्षमता क्या छीनी , एक तरह से उड़ने की नवीन क्षमता से समृद्ध हो गए , कभी जिस व्यक्ति ने रंग तूलिका या कैनवास से नाता नहीं रखा था । उसे ये माध्यम इस कदर सहारा देंगे इसकी कल्पना करना कठिन है । बसंत , बीते एक दशक में बेहतरीन चित्रकार के रूप में छत्तीसगढ़ से राष्ट्रीय कैनवास में दाखिल होने में सफल रहे हैं । माध्यम तो विविध रखे है : ऑईल , जलरंग और पेन से अभिव्यक्ति प्रकट करने में बसंत ने अब तक इतनी क्षमता दिखाई है कि आठ एकल प्रदर्शनियों के अलावा सामूहिक मंचो पर भी अपना नाम दर्ज कराया है । इस विधा में बसंत का अब तक कोई गुरू नहीं है । वे समाज से मिल रहे सुझावों को ही अपना गरू मान कर चित्रों का निर्माण करते है । फिलहाल आध्यात्मिक चित्रों की श्रृंखला में व्यस्त बसंत के काम में । सूक्ष्मता , संपूर्णता और पारंगत दष्टि का गहरा संतलन है । लोक कला के प्रात अनुराग और प्रगतिशीलता का स्वीकार दोनों का सतुलना रखना इस कलाकार की अतिरिक्त खूबी है । आज उनको बहुत सारे अन्य समान भी मिले है जो आज उन्हें एक पहचान दे रहे है ।

उनकी सोच और आत्मविश्वास के कारण आज वो दिव्यांग होते हुए भी सामान्य इंसान से भी ज्यादा काबिल और आत्मनिर्भर है । उन्होंने एक ही बात हर बार कहा है और मानते है कि – *मन के जीते जीत* *मन के हारे हार* ।

श्रीमती यशा ¥ की रिपोर्ट 🖋️ 

 

 

Author: Sudha Bag

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